Supriya Pathak
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं , मिल रही है हयात फूलों की फिर छिड़ी रात, बात फूलों की, रात है या बारात फूलों की
~ मख़दूम - बाजार (१९८२)
More by Nirmal Parmar View profile
Like
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं , मिल रही है हयात फूलों की फिर छिड़ी रात, बात फूलों की, रात है या बारात फूलों की
~ मख़दूम - बाजार (१९८२)